5. आख़री वाइसराय,
माउंटबैटन
जिस वक़्त अदूरदर्शी
भावनाएं और विचारों की अभिव्यक्तियाँ अपने अपने तरीकों से देश की एकता को भंग करने के
प्रयास में लगीं थीं साबरमती का वह संत टैगोर के गीत से प्रेरित अकेला देश को
जोड़ने के प्रयास में लगा था . अखंड भारत उसका स्वप्न था और अखंड स्वाधीन भारत ही
उसका अकेला लक्ष था जिसे वह हर हाल में
हासिल करना चाहता था. नया वाइसराय जो
भारत आ रहा था , पराधीन राष्ट्रों की स्वाधीनता का पक्षधर था , भारत को अखंड रखना
छाता था , गांधी का बहुत सम्मान करता था
पर वह भारत आने से कतरा रहा था क्योंकी पराधीन राष्ट्रों की स्वाधीनता का पक्षधर
होने के बावजूद वह साम्राज्य के अवश्यम्भावी अंत का सूत्रधार बनने से बचना चाहता
था.
लन्दन में महायुद्ध के दो वर्षों बाद नववर्ष की
पूर्व संध्या कुछ ज्यादा ही ठण्ड बटोरे, उससे भी ठंढे मन से दस्तक देते नववर्ष को,
अपनी मजबूरियों में घिरी, युद्ध द्वारा दिए हुए घावों में कराहती, अनसुना कर रही
थी. ठण्ड ऐसी की मुंह से बाहर निकलती साँसें हीं धुंआ प्रतीत होतीं कमरों में कुछ गर्मी
और कुछ धुंध बिखेर रहीं थी. ना टर्की का गोश्त था न ही गर्माहट के लिए शराब जो
कहीं कहीं मिल भी रही थी तो लोगों के पहुँच से बाहर, आठ पौंड की कीमत पर. लोगों के
जूतों और कपड़ों पर पैबन्दों की संख्या ज्यादा ही दिख रही थी. दरजी और मोची अती
जीर्ण हो चुके वस्त्रों और जूतों की मरम्मती में कतिनायी महसूस कर रहे थे. चीज़ें
नदारत थी और राशन का दौर था. साम्राज्य पर सदियों से बिना खलाल उदित और प्रकाश
बिखेरता सूरज भी अब उस पर अस्त होने को विवश सा हो चला था.
एक कार सन्नाटा बिखरी सड़कों पर सरपट प्रधान
मंत्री के निवास दस डाउनिंग स्ट्रीट की ओर दौड़ी चली जा रही थी जिस पर सवार था
ज्यूरिक से आया एक शक्श जिसे प्रधान मंत्री एटली
ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण जिम्मेवारी के निर्वाह के लियी चुना था जिसे स्वीकारने
से यह शख्स कतरा रहा था. ऐसा नहीं की गंभीर चुनौतियों को स्वीकार करने में वह
हिचकता था पर यह जिम्मेवारी ही कुछ ऐसी थी जो किसी न किसी रूप से बर्तानी साम्राज्य
के सम्मान से जुडी थी और जिसकी निर्वाहन से बर्तानी ताज की तौहीन अब नियती थी. यह शक्श
जो खुद शाही परिवार से संबधित था इस अपमान का किरदार नहीं बनना छठा था बावजूद इसके
की वह खुद सारे गुलाम राष्ट्रों की आज़ादी का पक्षधर था.शाही परिवार का यह सदस्य
इसलिए इस जिम्मेवारी को स्वीकार नहीं करना कहता था क्यों की इस जिम्मेवारी का
निर्वाहन उसके अपने मत का ही हिस्सा होते हुए भी कुछ और लोगों की भावनाओं के विपरीत थीं जो बर्तानी साम्राज्य का अंत किसी भी रूप में
स्वीकाएने को तैयार नहीं थे. इनमें बर्तानिया के पुर्व प्रधानमंत्री चुर्चिल भी
शामिल थे चुर्चिल की सरकार जो हाल ही में
एटली की पार्टी से हारी थी किसी भी हालत
में भारत को स्वाधीनता देने के पक्ष में नहीं थी. वह चुनाव तो हार चुकी थी पर दुसरे सदन में अब भी
बहुमत में थी . एटली की पार्टी जो अब सत्ता में थी इस वचन के साथ सत्तारूढ़ हो सकी
थी की वह साम्राज्य के हिस्सों को स्वाधीनता प्रदान करेगी.
कार पर सवार वह शक्श माउंटबैटन पूर्ण रूप से
गुलाम देशों की स्वाधीनता का पक्षधर था पर खुद साम्राज्य के इस अंत की शुरुआत करने
से कतरा रहा था . उधर प्रधानमंत्री एटली
और उनकी सरकार किसी भी हालत में भारत को स्वाधीनता प्रदान करने में और विलम्ब नहीं
करना चाहती थी क्योकि भारत से आ रहीं खुफिया रिपोर्टें पुरजोर यह बता रहीं थीं के
भारत एक बड़े गृह युद्ध की तरफ बढ़ रहा था . 1100 से भी ज्यादा रियासतों में बटा उपमहाद्वीप
हिन्दू मुस्लिम वैमनस्यता के बीच एक गंभीर दृश्य प्रस्तुत कर रहा था . राजा अपने
रियासतों की भारत से अलग स्वाधीनता कहते थे, मुसलमान अपना पृथक पकिस्तान. इनसे अलग
गांधी ने राजाओं की प्रजा को राजाओं की महत्व्कांशाओं के विरुद्ध और देश के सामान्य जनों को अखंड स्वाधीन भारत
के स्वप्न के साथ जोड़ दिया था जिसकी समझ अंग्रेजों को थी और वह जानते थे की यह अहिंसक सेनानी बहुत खतरनाक था और किसी भी
हालत में भारत की अखंडता से समझौता करने को तैयार नहीं था . इन परिस्थितियों में
बर्तानी हुकूमत को भारत से अपने क़दमों को वापस खींचना था . एटली को भारत में इन
घड़ियों में एक दक्ष वाइसराय की आवशयकता थी . हालांकी न तो माउंटबैटन और न ही मुसलमानों को इस बात का कोई भान था की माउंटबैटन की भारत
के आख़री वाइसराय के पद पर नियुक्ती में नेहरु मेनन का विशेष
किरदार था . अगर मुसलामानों को इस का पता चल जाता तो माउंटबैटन की जिम्मेवारियां
और जटिल हो जातीं.
प्रधान मंत्री निवास के
सामने कार रुकी और उसमे से छः फीट से भी कुछ उंचा खूबसूरत व्यक्तिव का स्वामी उतरा
और दरवाजे से अन्दर दाखिल हुआ. प्रधान मंत्री उनका बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे .
बिना वक़्त खोये वार्तालाप शुरू हुई. प्रधान मंत्री ने माउंट को अपने पास बुलाने का
कारण बताया . माउंट पूरी तैयारी के साथ आई
थे उन्होंने तय कर रखा था की वो अपनी नियुक्ती स्वीकार करने के लिए ऐसे शर्त
रखेंगे जो प्रधान मंत्री को कभी भी स्वीकार ना हो और इस तरह वह खुद को ऐसी
नियुक्ती से बचा पाएंगे. उन्होंने ना ना प्रकार की कुछ सही और कुछ अजीबोगरीब शर्तें प्रधानमंत्री
के सम्मुख रख डालीं , जब प्रधान मंत्री ने ये शर्तें मान ली तब खुद को फंसते हुए
देखकर माउंट ने उनसे अपने इस्तेमाल के लिए एक वायुयान जिसका वो पूर्व से इस्तेमाल
करते आये थे मांग डाला इस उम्मीद के साथ की इन जटिल आर्थिक परिस्थितियों में उनकी यह मांग स्वीकारी नहीं जायेगी और वह इस
संकट से निकल जायेंगे. प्रधान मंत्री ने उनकी इस मांग को भी मान लिया.
अब प्रधान मंत्री ने
माउंट को भारत में उपस्थित गंभीर स्थितियों से अवगत कराना शुरू किया. किस तरह भारत
के तीस करोड़ हिन्दुओं और दस करोड़ मुसलामानों के बीच देश के अलग अलग भागों में दंगे
भड़क रहे थे और कत्लेआमों का दौर था . उनकी गंभीरता इतनी बढ़ गयी थी के निर्वतमान वाइसराय वैवेल ने प्रधान
मंत्री को मंत्रणा दी थी की इंग्लैंड को तत्काल भारत को उसके हाल पर छोड़ कर निकल
जाना चाहिए ,इस ऐलान के साथ की इसका किसी तरह का भी विरोध इंग्लैंड के खिलाफ युद्ध
समझा जाएगा जिससे उचित सख्ती के साथ निपटा जायेगा. महाद्वीप जो एक समस्या बन चुका था
उसके हल में अब और विलम्ब के परिणाम बहुत गंभीर और नियंत्रण के बाहर जा सकते हैं .
इस समस्या का हल माउंटबैटन को ही ढूंढना था . माउंट ने खुद को बचाने का एक और मौका
ढूंढ लिया “ मिस्टर प्राइम मिनिस्टर , अगर आप इस जहाज को चलने की जिम्मेवारी मुझ
पर सौंपना चाहतें हैं तो फिर मैं इस जहाज को अपनी समझ से चलाऊंगा और इसमें किसी का
हस्तक्षेप स्वीकार नहीं करूंगा और हिन्दुस्तान की स्वाधीनता से सम्बंधित सारे निर्णय
खुद लूँगा और इस में किसी का दखल मंजूर नहीं करूंगा “. प्रधान मंत्री ने हैरत भरी
निगाहों से एडमिरल माउंट की ओर देखा और पुछा, “क्या यह बादशाह से खुदमुख्तारी की अपेक्षा नहीं ? “ आप
ऐसा ही समझें , माउंट ने जवाब दिया ”.
प्रधान मंत्री ने कुछ सोचा , मुस्कुराए और स्वीकारोक्ती में सर झुका दिया.
माउंटबैटन वाइसराय की जिम्मेवारी से नहीं बच सके
पर उन्होंने अब भी एक मौक़ा ढूंढ लिया, अपने मित्र और संबंधी बादशाह एडवर्ड के पास
पहुँच गए . बातचीत के क्रम में उन्होंने बादशाह एटली के साथ हुई मंत्रणा की
जानकारी दी और किसी उम्मीद के साथ कहा “ योर हाइनेस !कान्ग्रेसिओं अगर मैं भारत
में अपनी जिम्मेवारिओं में विफल हो गया तो ताज का बहुत अपमान होगा “. बादशाह ने
जवाब दिया, “ माउंट ! “अगर आप अपनी जिम्मेवारिओं में सफल हो गए तो इससे बर्तानी
ताज का सम्मान और बढ़ जायेगा “. माउंट अपनी योजना में विफल हो चुके थे उन्हें नहीं
मालूम था की प्रधान मंत्री ने बादशाह के साथ गंभीर गोपनीय मंत्रणा के उपरान्त ही
उन्हें भारत भेजने का निर्णय लिया था माउंट जिसके जानकार अब भी न हो सके थे.